Friday, January 28, 2011

थेंक्यू मिस्टर मैथ्यू

अमरीकी प्रोफ़ेसर मैथ्यू वल्मोटे ने १६ दिसंबर २०१० को चित्रकूट की मंदाकनी नदी में अपने पिता का तर्पण किया | अमरीका में उनके घर में राम की पूजा होती है ,रामायण पढ़ी जाती है | क्या ये बातें सिर्फ एक खबर का अंश है ? मेरा मानना है कि ये व्यापक अर्थों में सन्देश है उन लोगों के लिए जो राम को बाँट कर जीते है कि राम सब के हैं | वे किसी देश, धर्म ,समाज की सीमाओं के बंधन में न थे ना ही हैं | प्रो.मैथ्यू का देश अमरीका है ,धर्म ईसाई,और समाज मसीही लेकिन उनके घर में राम है ,मन में राम हैं और यहाँ तक कि संसकारों में भी राम है | उधर हमारे देश में, जो राम का देश है राम का परिवेश है ,राम हमारे लिए  राजनीति का विषय हैं अनुसरण का नहीं | राम सत्ता प्राप्ति का जरिया हैं ,रोटी कमाने का जरिया है | हम मंदाकनी को पवित्र नदी मानते है पर  पवित्र रखते नहीं | हम उसमे नहाते भर नहीं हैं उसे गन्दा करने में भी कोई कसर  नहीं छोड़ते | जब बात सफाई की आती है तो हम मुंह देखते हैं सरकार का | जिस मंदाकनी को प्रो.मैथ्यू ने अपने पिता के तर्पण के लिए चुना वही मन्दाकिनी राम के वनवास काल की साक्षी है | लेकिन हम उसकी पवित्रता को लेक कितने सचेत हैं ? प्रो. मैथ्यू अपने पिता का तर्पण अमरीका की किसी नदी में या फिर भारत की किसी दूसरी नदी में भी कर सकते थे | वे गंगा जा सकते थे , गोदावरी जा सकते थे ,यमुना जा सकते थे पर वे चित्रकूट आये मंदाकनी के तट पर क्यों कि वे राम को बाँट का नहीं जीते | वे राम ,उनके चरित्र ,उनकी तपस्या ,त्याग ,और सन्देश से बिना किसी लाग- लपेट प्रभावित हैं | उनकी पत्नी रामचरित मानस पढ़तीहैं शायद उसी से उन्होंने राम को जाना ,पहचाना ,चित्रकूट और मंदाकिनी के महत्व को समझा | वे आये तो थे तर्पण के लिए पर कहीं ना कहीं हमे कुछ ना कुछ सिखा गये ,बता गये कि राम सीमाओं से परे हैं |वे भारत के हैं तो अमरीका के भी | हिन्दुओं के हैं तो ईसाईयों के भी | बस उन्हें मन प्राण  से मानो |  थेंक्यू मिस्टर मैथ्यू |

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