Wednesday, December 22, 2010

भई, हमने भी प्याज खरीदी है

प्याज के आसमानी दामों को लेकर पूरा देश परेशान है | मीडिया तरह -तरह के शीर्षक दे कर खबरें बेच रहा है ,सरकार सकपकाई है पर कुछ लोग खुश हैं कि कम पैसे में ही स्टेट्स दिखने का मौका मिल गया | एक सज्जन आजकल जब घर से सब्जी लेने निकलते हैं तो दो -चार लोगों को ये जरूर बताते हैं कि वे प्याज भी लेंगे | सीना फुला कर लौटते समय भी जो परिचित  का मिलता उसे भी बताते जाते कि भई हमने भी प्याज खरीदी है | वैसे इन दिनों प्याज खरीदना वाकई साहस का काम है | आठ रूपये किलो की प्याज अगर कोई अस्सी रूपये में खरीदता है तो उसे बड़ा आदमी मान लेने में हर्ज ही क्या है ? जरा याद करें जब अपने स्वमूत्र प्रेमी प्रधानमंत्री मोरार जी भाई थे तब भी प्याज ने रंग दिखाया था और सरकार चली गई थी | अब कई साल बाद फिर मौका आया है प्याज के बहाने रुतबा दिखाने का | मजे की बात ये है कि जो लोग कभी झोले में सबसे नीचे प्याज रख कर लाते थे अब वे इस तरह लाते हैं कि रास्ते में आने-जाने वालों को प्याज जरूर दिखनी चाहिए | यहाँ यह बात भी मायने रखती है कि जरूरी नहीं कि प्याज ज्यादा हो | बस झोले में वह दिखनी चाहिए | जरा देखिये तो सही कि अनार ६० रूपये है पर लोग उसे ना तो खरीदते हैं ना ही ऊपर रखते हैं | जो लोग इन दिनों प्याज खरीदते हैं वे उसे घर में संभल कर खर्च करते हैं | अगर कोई मेहमान आ जाये तो एक प्याज के पचास टुकड़े करके परोसते हैं ,हाँ इस दौरान वे उसके रेट की चर्चा करना नहीं भूलते | मंहगाई के बहाने बात ही बात में ये कहते हैं कि भाई हमने भी कल ही प्याज खरीदी है ताकि कोई ये ना समझ ले कि कहीं पुराने रेट वाली प्याज तो नहीं परोस दी गयी है | अब उलझन ये है कि प्याज खरीदने वाले की आँखों से जो आंसू टपकते हैं वे रुतबे की खुशी के हैं या फिर मंहगाई  के | बहरहाल एक गाना याद करें ..... प्यार बिना चैन कहाँ रे.....| बस इसे यूँ गुनगुनाइए ....... प्याज बिन चैन कहाँ रे ...........| खैर जाने भी दीजिये , प्याज से ज्यादा प्याज लेने वालों को  देखिये जो बात बात पर ये कहने से नहीं चूकते कि भाई हमने भी प्याज खरीदी है | 

Saturday, December 18, 2010

               TUM

Hothon per ruki hui ek bat ho tum,
 dil ke ankahe se jajbat ho tum
.
 jo kabhi poori na ho saki tum se,
 vo adhoore se ek mulakat ho tum.
 
 khuda ne jise khud hi sanvara hoga,
 khoobsurti ke aise kaynat ho tum
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 hum to mohre hain teri dewangi ke,
 kabhi shah to kabhi maat ho tum.
  
 neele samunder ke seene pe itrati,
 balkhati lahron ke sougat ho tum
.
 teri julfo ke saye me so jaoon mai,
 mere khvabo ke vo hansi rat ho tum.
 
  

Friday, December 17, 2010

आतंक की जाति और धर्म

क्या आतंक की भी कोई जाति या धर्म होता है ? इस सवाल पर लोगों के अपने अपने विचार हो सकते हैं लेकिन सियासत में इसके मायने सिर्फ अपनी रोटी सेंकना होता है | आतंकवादी घटनाओं में ये सच बात है कि जितने भी लोग पकड़े गये हैं उनमें ज्यादातर मुस्लिम हैं जिस से एक धारणा बन गई है कि यह पूरी कौम ही आतंकी है | यह पूरा सच नहीं है | हिंदुत्व की राजनीति करने वालों ने इसे मुस्लिम आतंकवाद के रूप में प्रचारित किया | उधर कांग्रेस की तरफ से इसका जवाब हिन्दू आतंकवाद के रूप में दिया गया |साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, आर एस एस से जुड़े इन्द्रेश को घेर कर कांग्रेस ने भगवा या हिन्दू आतंकवाद का इतना प्रचार किया कि ऐसा लगने लगा जैसे हिदुओं को आतंकी ठहराने की जिद सी ठान ली गई है| हैरानी की बात यह है कि ऐसा करने वाले भी हिन्दू ही हैं | सियासत में कम करने वाले पता नहीं इस बात को क्यों स्वीकार नहीं करते कि आतंक, आतंकवादी और किसी भी अपराधी की कोई जाति,देश,धर्म नहीं होता | वह अपनी हरकतों को पाकिस्तान से भी अंजाम देता है तो अफगानिस्तान से भी,वह लोगों की जान हिंदुस्तान में भी लेता है और रशिया  में भी | जो आतंक के रास्ते पर है वो अपने मकसद के लिए हिदुओं को भी मारता है और मुसलमानों को भी | उसका निशाना मंदिर भी होते हैं और मस्जिद भी, फिर कहाँ है मुस्लिम या हिन्दू आतंकवाद | सच तो यह है की आतंकवाद की जाति नेताओं ने बांटी है | धर्म से भी उन्होंने ही जोड़ा है| विकिलिस से  राहुल गांधी यही बात कहते हैं तो दूसरी तरफ आये दिन दिग्विजय सिंह भगवा आतंकवाद की बात दोहराते हैं | देश के गृह मंत्री भी पीछे नहीं रहते मौका मिलते ही आग  में घी डालते हैं | ऐसा कम ही देखने को मिला है जब आतंकवाद के मुद्दे पर सभी दलों के नेता एक स्वर में बोले हों | यदि कहीं विस्फोट हो जाता है तो सिर्फ एक दुसरे के खिलाफ बयानबाजी के कुछ नजर नहीं आता | हाल ही में वाराणसी में विस्फोट हुआ तो यूपी की सीएम मायावती ने यह  कह कर पल्ला झाड़ लिया कि केंद्र से ऐसी कोई सूचना नहीं थी , केंद्र  के नेताओं ने कहा यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है |बहरहाल हिदुओं को आतंकी साबित करने की यह चाल आत्मघाती साबित हो सकती है | बात फिर वही है कि आतंकी की कोई जाति या धर्म नहीं होता |  

Thursday, December 16, 2010

थेंक्यू मिस्टर मैथ्यू

अमरीकी प्रोफ़ेसर मैथ्यू वल्मोटे ने १६ दिसंबर २०१० को चित्रकूट की मंदाकनी नदी में अपने पिता का तर्पण किया | अमरीका में उनके घर में राम की पूजा होती है ,रामायण पढ़ी जाती है | क्या ये बातें सिर्फ एक खबर का अंश है ? मेरा मानना है कि ये व्यापक अर्थों में सन्देश है उन लोगों के लिए जो राम को बाँट कर जीते है कि राम सब के हैं | वे किसी देश, धर्म ,समाज की सीमाओं के बंधन में न थे ना ही हैं | प्रो.मैथ्यू का देश अमरीका है ,धर्म ईसाई,और समाज मसीही लेकिन उनके घर में राम है ,मन में राम हैं और यहाँ तक कि संसकारों में भी राम है | उधर हमारे देश में, जो राम का देश है राम का परिवेश है ,राम हमारे लिए  राजनीति का विषय हैं अनुसरण का नहीं | राम सत्ता प्राप्ति का जरिया हैं ,रोटी कमाने का जरिया है | हम मंदाकनी को पवित्र नदी मानते है पर  पवित्र रखते नहीं | हम उसमे नहाते भर नहीं हैं उसे गन्दा करने में भी कोई कसर  नहीं छोड़ते | जब बात सफाई की आती है तो हम मुंह देखते हैं सरकार का | जिस मंदाकनी को प्रो.मैथ्यू ने अपने पिता के तर्पण के लिए चुना वही मन्दाकिनी राम के वनवास काल की साक्षी है | लेकिन हम उसकी पवित्रता को लेक कितने सचेत हैं ? प्रो. मैथ्यू अपने पिता का तर्पण अमरीका की किसी नदी में या फिर भारत की किसी दूसरी नदी में भी कर सकते थे | वे गंगा जा सकते थे , गोदावरी जा सकते थे ,यमुना जा सकते थे पर वे चित्रकूट आये मंदाकनी के तट पर क्यों कि वे राम को बाँट का नहीं जीते | वे राम ,उनके चरित्र ,उनकी तपस्या ,त्याग ,और सन्देश से बिना किसी लाग- लपेट प्रभावित हैं | उनकी पत्नी रामचरित मानस पढ़तीहैं शायद उसी से उन्होंने राम को जाना ,पहचाना ,चित्रकूट और मंदाकिनी के महत्व को समझा | वे आये तो थे तर्पण के लिए पर कहीं ना कहीं हमे कुछ ना कुछ सिखा गये ,बता गये कि राम सीमाओं से परे हैं |वे भारत के हैं तो अमरीका के भी | हिन्दुओं के हैं तो ईसाईयों के भी | बस उन्हें मन प्राण  से मानो |  थेंक्यू मिस्टर मैथ्यू |

शादी,सत्ता और शक्ति प्रदर्शन

सांसद गणेश सिंह बेशक बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने १४ दिसंबर को अपनी भतीजी कि शादी में करीब ६० हजार लोगों को बुलाया| वे सांसद हैं ऐसा कर सकते हैं | एक- दो करोड़ उनके लिए कोई मायने नहीं रखते वैसे इस शाही शादी पर खर्चे को लेकर लोगों ने जुबान खोलनी शुरू कर दी है | शादी सांसद के परिवार की थी इसलिए प्रशासन से लेकर पुलिस तक नतमस्तक रही | प्रदेश में भाजपा की सत्ता और सत्ता का सांसद होने के नाते पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह और सीएम शिवराज सिंह से लेकर तमाम सांसद ,विधायक,मौजूद रहे | कुछ लोग तो सचमुच शादी के लिए आये थे पर अधिकांश बड़े नेताओ की चमचागिरी में लगे थे | शादी में सत्ता और शक्ति प्रदर्शन साफ दिखा| भले मामला ही शादी का था लेकिन प्रोटोकाल के कारण कलेक्टर, एसपी को तो रहना ही था ,सो वे रहे | जिन लोगो को उम्मीद थे कि छक कर खायेंगे उनकी जीभ और पेट मनमाफिक तृप्त नहीं हो सका | खाने का भरपूर इंतजाम होने के बाद भी खाने  को मिले सिर्फ धक्के | भीड़ ऐसे कि जैसे कुम्भ का मेला लगा हो | सांसद जी  ने जितने लोगों को न्योता दिया उससे चार गुना लोग पहुँच गये | आखिर न्योता सांसद का जो था उस पर भी नेताओं की भीड़ | सांसद ने अपने गाँव गाँव के वोटरों को जितने प्यार से बुलाया जनता भी उतने ही प्यार से पहुंची | इस शादी में हर आदमी खुद को वीईपी मान रहा था वो इसलिए कि कोई विधायक था तो कोई विधायक का खास ,कोई सांसद का प्रतिनिधि , कोई सरपंच ,कोई पत्रकार मतलब ये कि कोई किसे से कम नहीं था | पंडाल में भी सत्ता और जनता का अलग अलग इंतजाम था पर एक समय ऐसा भी आया कि रोटी के लिए जनता ने सत्ता को धक्का दे दिया| जिनके लिए कुर्सियों पर बैठ कर खाने का इंतजाम था वहां वोट देने वालों ने खड़े खड़े कब्ज़ा का लिया |  इसी बीच सांसद तक सन्देश पहुंचा कि अगर वोटरों को रोटी न मिली तो दूरगामी परिणाम हो सकते हैं|
हाँ , तो मै कह रहा था कि सांसद के यहाँ शादी में सत्ता और शक्ति का प्रदर्शन भी नजर आया | गाँव से जुड़े सांसद ने दिल्ली की  तर्ज पर मेहमानों के  स्वागत के लिए उन कन्याओं का भी इंतजाम किया था जो मुस्कान के साथ भोजन परोसती थीं कुछ लोगों को भोजन से कहीं ज्यादा ये इंतजाम पसंद आया | वैसे ये कोई नई बात नहीं थी |इतना जरूर है कि सामान्य लोगों को ऐसी शादियाँ कम ही नसीब होती हैं | गणेश सिंह के यहाँ मुख्यमंत्री और राजनाथ सिंह के आने से भाजपा के भीतर यह सन्देश तो जरूर गया कि कुछ भी हो उनकी पकड़ ऊपर तक बहुत मजबूत है | पार्टी के भीतर और बाहर ऐसा माना  जाता है कि जिले में भाजपा एक तरफ और गणेश सिंह दूसरी तरफ तो ये बात शादी में भी कहीं न कहीं साबित हुई | शिवराज सिंह और राजनाथ सिंह ने आ कर शादी की रौनक तो बढाई ही साथ में गणेश सिंह का रुतबा भी बढ़ाया | अब तो न केवल सतना बल्कि पूरे प्रदेश में कुछ विधायक और दूसरे नेता भी गणेश परिक्रमा को जरूरी मानने लगे हैं | बहरहाल इसे शादी में सियासत कहें या सियासत के लिए शादी पर इतना तो तय है कि इसकी धमक भाजपा में दिल्ली तक होगी |

Tuesday, December 14, 2010

अक्सर लोग सवाल करते है की आप पत्रकार क्यों बने ?खास कर वे लोग जरूर पूछते हैं जिनको मालूम है कि मै कभी बैंक में था |ऐसे सवाल सिर्फ शुभचिंतक ही नहीं करते बल्कि कोई- कोई अख़बार के मालिक भी कर डालते है| इस बारे में सिर्फ एक उदाहरण दिया जा सकता है | जब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को अपना देश छोड़ना था तो ठीक एक रात पहले उन्होंने देश के नाम सन्देश दिया | अपने भाषण में उन्होंने एक महत्व पूर्ण लाइन कही कि उन्हें पाकिस्तान से इश्क है बस ऐसा ही कुछ इश्क मुझे अखबारों से है | अभी 28 नवम्बर 11 को ट्रेन में सफ़र करते समय भी एक सेवानिवृत फौजी से मुलाकात हो गई | ट्रेन के सफ़र के साथ बातो  का सफ़र शुरू हुआ तो उन्होंने बताया कि उन्होंने सियालकोट ,लाहोर तक कई लड़ाई लड़ी कभी कच्छ तो कभी सिक्किम में रहे फिर उन्होंने पूछा आप क्या करते हैं ? ये बताने पर कि पत्रकार हैं पहले बैंक में थे उन्होंने भी वही पहचाना सा सवाल किया जब बैंक में थे तो पत्रकार क्यों बन गए | आज आप की वेतन ४० हजार होती अख़बार में क्या मिलता होगा | आपने बड़ी गलती कर दी | जनाब अपनी आर्मी को सराहे जा रहे थे और हमारे प्रोफेशन को जो मन में आये कहे जा रहे थे | मुझे अच्छा नहीं लगा और मैंने उनसे बात बंद कर दी | लोगो के ऐसे बेतुके सवाल मुझे परेशान करते है | सवाल यह है की क्या पत्रकार होना इतना गलत है कि २३ साल बाद भी अपने निर्णय पर सफाई देनी पड़े | जो समाज,नेता, देश,मित्र और दुसरे लोग भी पत्रकारों से मदद की उम्मीदें पाले रहते है उनका नजरिया भी कभी कभी यूं ही दिखाई देता है क्यों ?

Monday, December 13, 2010

नया वर्ष आने वाला है | सभी को हमेशा की तरह एडवांस में शुभकामनाए | कहने को बहुत  कुछ है , लिखने को बहुत कुछ है नये साल में करने को भी बहुत कुछ है | शक्तिबाण कभी चुभेगे तो कभी सोचने को मजबूर भी करेगे |अपने कमेन्ट जरूर दे |कुछ लिखेगे आप के लिए बहुत जल्द