Wednesday, April 27, 2011

इशारों को अगर समझो ..........

म.प्र विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता अर्थात नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद चुरहट विधायक अजय सिंह "राहुल" का कद अचानक बढ़ गया है | कांग्रेस के भीतर तमाम अंतर्विरोधों के बाद भी राहुल  दिग्विजय खेमे से म.प्र.में कांग्रेस के ऐसे नेता के रूप में निकल कर आये जिन पर कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश में संगठनकी मजबूती ही नही आगामी वर्ष २०१३ के विधानसभा चुनाव में सत्ता तक पार्टी को ले जाने का भरोसा भी जताया है | राहुल  का पूरे प्रदेश में जोरदार स्वागत हो रहा है ,खास कर विन्ध्य प्रदेश में तो वे छाये हुए हैं | कुछ समय पहले तक जो लोग उनसे कतराए घूमते थे वे माला लिए धूप में खड़े दिख रहे हैं | लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने राहुल का साथ कभी नहीं छोड़ा वे तब भी साथ थे जब राहुल सिर्फ विधायक थे | 
 राहुल कांग्रेस की युवा पीढ़ी के लिए पहले भी विश्वसनीय नेतृत्व थे और आज भी हैं | लेकिन नेता प्रतिपक्ष बन ने के बाद वे जो कुछ भी अपने भाषणों में कह रहे हैं उसे समझने की जरूरत है | उनके भाषणों में उनके भीतर वर्षों से पल रही तीव्र महत्वकान्छा हर जगह सामने आ रही है | वे बार बार सन १९८० का इतिहास दोहराने की बात म.प्र.में कर रहे हैं तब उनके पिता यहाँ मुख्यमंत्री थे | जाहिर हैं एक मंजे हुए नेता की तरह वे भी अब कोई अवसर खोना नहीं चाहते | कांग्रेस ने उन्हें दूसरी बार मौका दिया है | पहले वे २००९ के विधान सभा चुनाव के चुनाव अभियान संयोजक बनाये गये यह चुनाव सुरेश पचोरी की अगुआई में कांग्रेस बुरी तरह से हारी | तमाम आलोचनाओं के बाद भी राहुल सीधी जिम्मेदारी से बच गये और ऐसा माना गया कि म.प्र में कांग्रेस पचौरी के कारण हारी बावजूद इसके कांग्रेस ने उन्हें अपना कार्यकाल पूरा करने का मौका दिया | अब बारी है राहुल की | वे कांग्रेस को मजबूत तो करना चाहते हैं पर इस छिपी हुई मंशा के साथ कि मानसिक रूप से कांग्रेस के लोग उन्हें अभी से सन २०१३ के चुनाव में प्रदेश का मुख्यमंत्री स्वीकार कर लें | वे भाषणों में कहीं न कहीं कार्यकर्ताओं को संदेश देना चाहते  हैं कि वे लगभग ऐसा ही मान कर कांग्रेस को मजबूत करें | एक बड़े नेता के रूप में उनकी यह कोशिश होनी भी चाहिए लेकिन अभी पद मिले चार दिन भी नहीं हुए और ये तेवर .........................|
 दिग्विजय सरकार में पंचायत एवं संस्क्रति मंत्री रह चुके राहुल के मंसूबे पूरे करने के लिए वह लाबी जी- जान से लगी है जो राजनीति में कहीं न कहीं दाऊ साब के अहसानों तले दबी है या जिन्हें उनके राजनैतिक उत्कर्ष में नियमों को शिथिल कर लम्बे फायदे हुए हैं | बहरहाल राहुल के भाषणों को सुनने से ज्यादा गुनने की जरूरत है | इशारो- इशारो में वे क्या कह रहे हैं यह समझने की जरूरत हैं |
 

Saturday, April 16, 2011

शिव के राज में उमा का गाँव

  निष्ठुर सत्ता और सियासी वैमनस्य का जीता जागता उदाहरण है म.प्र. की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का पेत्रक गांवं डूंडा | चारों तरफ से बड़े -बड़े पत्थरों और नंगे पहाड़ों से घिरे इस गाँव में कभी सत्ता की धमक होती थी | आज डूंडा को उमा भारती के राजनेतिक अवसान का दंड भुगतना पड़ रहा है | प्रदेश की शिवराज सरकार उमा से मनभेदों का बदला पूरे गाँव से ले रही हैं ऐसा यहाँ के लोंगों का स्पष्ट मानना है | शिवराज के राज में उमा के गाँव के क्या हाल हैं यह देखने के लिए जब मैं डूंडा पहुंचा तो लगा ही नहीं कि ये किसी पूर्व मुख्यमंत्री का गाँव है|  इस गाँव के बच्चे-बच्चे की जुबान पर एक ही बात है कि डूंडा सियासी वैमनस्य का शिकार हुआ है | उमा के पैत्रक घर की दहलीज पर अब न तो कोई अधिकारी जाता है न ही नेता | इस साल पूरा गाँव सूखे की चपेट में है | ग्रामीणों ने बताया कि ३५ सौ की आबादी वाले इस गाँव में कहने को तो २४ हेंड पम्प हैं पर केवल चार में ही कुछ कम चल रहा है बाकी के बंद हैं |  भरी गर्मी में १२ घंटे बिजली नही रहती | खुद उमा भारती  के भाई अमृत सिंह लोधी  शिवराज के मंत्रियों की दादागिरी से परेशान हैं | बाइक चोरी जैसे मामूली अपराधों में वे मुलजिम बना दिए जाते हैं | उनका कहना है कि शिवराज तो ठीक उनके मंत्री भी पुलिस के जरिये उनको और डूंडा के लोगों को प्रताड़ित करते हैं | विकास के सारे काम इस गाँव में ठप्प हो चुके हैं | जिस दहलीज पर कलेक्टर आये दिन दुःख दर्द पूछने आता था उसने आँखे फेर ली हैं | अगर आप डूंडा जाना भी चाहें और अपना वाहन न हो तो पहुंचना आसान नहीं क्योंकि इस गाँव में बसें नही चलती पहले दो बसें चलती थीं जो बंद हो चुकी हैं | मजे की बात ये है कि आज तक यहाँ कभी भी शिवराज सिंह नहीं आये | अगर कभी आसपास कार्यक्रम हुआ भी तो यहाँ नहीं पहुंचे | पूरा गाँव पानी ,बिजली , विकास योजनाओं सरकारी मदद  के लिए रो रहा है | उमा के एक भाई स्वामी लोधी सन्यासी हो गये हैं |उन्होंने तो अपना नाम तक बदल लिया है | अब वे स्वामी लोधी से स्वामी विशुद्दानंद हो गये हैं | कुल मिला कर उमा बिना उनका डूंडा अनाथ और बेसहारा हो चुका है |