Tuesday, December 14, 2010
अक्सर लोग सवाल करते है की आप पत्रकार क्यों बने ?खास कर वे लोग जरूर पूछते हैं जिनको मालूम है कि मै कभी बैंक में था |ऐसे सवाल सिर्फ शुभचिंतक ही नहीं करते बल्कि कोई- कोई अख़बार के मालिक भी कर डालते है| इस बारे में सिर्फ एक उदाहरण दिया जा सकता है | जब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को अपना देश छोड़ना था तो ठीक एक रात पहले उन्होंने देश के नाम सन्देश दिया | अपने भाषण में उन्होंने एक महत्व पूर्ण लाइन कही कि उन्हें पाकिस्तान से इश्क है बस ऐसा ही कुछ इश्क मुझे अखबारों से है | अभी 28 नवम्बर 11 को ट्रेन में सफ़र करते समय भी एक सेवानिवृत फौजी से मुलाकात हो गई | ट्रेन के सफ़र के साथ बातो का सफ़र शुरू हुआ तो उन्होंने बताया कि उन्होंने सियालकोट ,लाहोर तक कई लड़ाई लड़ी कभी कच्छ तो कभी सिक्किम में रहे फिर उन्होंने पूछा आप क्या करते हैं ? ये बताने पर कि पत्रकार हैं पहले बैंक में थे उन्होंने भी वही पहचाना सा सवाल किया जब बैंक में थे तो पत्रकार क्यों बन गए | आज आप की वेतन ४० हजार होती अख़बार में क्या मिलता होगा | आपने बड़ी गलती कर दी | जनाब अपनी आर्मी को सराहे जा रहे थे और हमारे प्रोफेशन को जो मन में आये कहे जा रहे थे | मुझे अच्छा नहीं लगा और मैंने उनसे बात बंद कर दी | लोगो के ऐसे बेतुके सवाल मुझे परेशान करते है | सवाल यह है की क्या पत्रकार होना इतना गलत है कि २३ साल बाद भी अपने निर्णय पर सफाई देनी पड़े | जो समाज,नेता, देश,मित्र और दुसरे लोग भी पत्रकारों से मदद की उम्मीदें पाले रहते है उनका नजरिया भी कभी कभी यूं ही दिखाई देता है क्यों ?
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