म.प्र विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता अर्थात नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद चुरहट विधायक अजय सिंह "राहुल" का कद अचानक बढ़ गया है | कांग्रेस के भीतर तमाम अंतर्विरोधों के बाद भी राहुल दिग्विजय खेमे से म.प्र.में कांग्रेस के ऐसे नेता के रूप में निकल कर आये जिन पर कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश में संगठनकी मजबूती ही नही आगामी वर्ष २०१३ के विधानसभा चुनाव में सत्ता तक पार्टी को ले जाने का भरोसा भी जताया है | राहुल का पूरे प्रदेश में जोरदार स्वागत हो रहा है ,खास कर विन्ध्य प्रदेश में तो वे छाये हुए हैं | कुछ समय पहले तक जो लोग उनसे कतराए घूमते थे वे माला लिए धूप में खड़े दिख रहे हैं | लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने राहुल का साथ कभी नहीं छोड़ा वे तब भी साथ थे जब राहुल सिर्फ विधायक थे |
राहुल कांग्रेस की युवा पीढ़ी के लिए पहले भी विश्वसनीय नेतृत्व थे और आज भी हैं | लेकिन नेता प्रतिपक्ष बन ने के बाद वे जो कुछ भी अपने भाषणों में कह रहे हैं उसे समझने की जरूरत है | उनके भाषणों में उनके भीतर वर्षों से पल रही तीव्र महत्वकान्छा हर जगह सामने आ रही है | वे बार बार सन १९८० का इतिहास दोहराने की बात म.प्र.में कर रहे हैं तब उनके पिता यहाँ मुख्यमंत्री थे | जाहिर हैं एक मंजे हुए नेता की तरह वे भी अब कोई अवसर खोना नहीं चाहते | कांग्रेस ने उन्हें दूसरी बार मौका दिया है | पहले वे २००९ के विधान सभा चुनाव के चुनाव अभियान संयोजक बनाये गये यह चुनाव सुरेश पचोरी की अगुआई में कांग्रेस बुरी तरह से हारी | तमाम आलोचनाओं के बाद भी राहुल सीधी जिम्मेदारी से बच गये और ऐसा माना गया कि म.प्र में कांग्रेस पचौरी के कारण हारी बावजूद इसके कांग्रेस ने उन्हें अपना कार्यकाल पूरा करने का मौका दिया | अब बारी है राहुल की | वे कांग्रेस को मजबूत तो करना चाहते हैं पर इस छिपी हुई मंशा के साथ कि मानसिक रूप से कांग्रेस के लोग उन्हें अभी से सन २०१३ के चुनाव में प्रदेश का मुख्यमंत्री स्वीकार कर लें | वे भाषणों में कहीं न कहीं कार्यकर्ताओं को संदेश देना चाहते हैं कि वे लगभग ऐसा ही मान कर कांग्रेस को मजबूत करें | एक बड़े नेता के रूप में उनकी यह कोशिश होनी भी चाहिए लेकिन अभी पद मिले चार दिन भी नहीं हुए और ये तेवर .........................|
दिग्विजय सरकार में पंचायत एवं संस्क्रति मंत्री रह चुके राहुल के मंसूबे पूरे करने के लिए वह लाबी जी- जान से लगी है जो राजनीति में कहीं न कहीं दाऊ साब के अहसानों तले दबी है या जिन्हें उनके राजनैतिक उत्कर्ष में नियमों को शिथिल कर लम्बे फायदे हुए हैं | बहरहाल राहुल के भाषणों को सुनने से ज्यादा गुनने की जरूरत है | इशारो- इशारो में वे क्या कह रहे हैं यह समझने की जरूरत हैं |